SHEOHAR: सरोजा सीताराम सदर अस्पताल शिवहर के मरीजों का टूरिज्म सेंटर बना मुजफ्फरपुर
Lal Babu pandey SHEOHAR
SHEOHAR / सदर अस्पताल अब कोई मेडिकल सेंटर नहीं, बल्कि "मुजफ्फरपुर रेफरल एक्सप्रेस" का टिकट काउंटर बन चुका है। यहाँ इलाज की उम्मीद लेकर आने वाले मरीजों को बस एक ही दवा मिलती है—रेफर स्लिप! लगता है, यहाँ डॉक्टरों की ट्रेनिंग नहीं, बल्कि "कितनी तेजी से मरीज को रेफर कर सकते हो?" इसका वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की प्रैक्टिस चल रही है।
मरीज आता है, डॉक्टर दो मिनट में बोलता है— "मुजफ्फरपुर जाओ!"
सरकारी सुविधा? हां, बिल्कुल! "फ्री ट्रैवल एजेंसी" की तरह रेफर कर दिया जाएगा, बस एंबुलेंस का किराया अलग से देना होगा!
ब्लड बैंक या "खून के आंसुओं" का गोदाम?
शिवहर का ब्लड बैंक ऐसा है कि वहाँ खून की उम्मीद करना वैसा ही है जैसे बिना रिश्वत के सरकारी काम होने की उम्मीद रखना!
मरीज के परिजन पूछते हैं— "A+ मिलेगा?"
जवाब मिलता है— "सॉरी भैया, स्टॉक में सिर्फ ताला है!"
यहाँ खून कम, मकड़ी के जाले और धूल ज़्यादा मिलती है। यहाँ तक कि बोर्ड पर लिखा होना चाहिए— "जो ग्रुप चाहिए, वो अभी आउट ऑफ स्टॉक है!" अरे भाई, ब्लड बैंक चला रहे हो या ऑनलाइन शॉपिंग की "सेल एंड"?
मातृ एवं शिशु अस्पताल: डॉक्टर ढूंढो, धैर्य लाओ!
शिवहर का मातृ एवं शिशु अस्पताल ऐसा है कि वहाँ डॉक्टर मिलने की संभावना वैसी ही है जैसे बिहार में बिना कटौती के बिजली आने की!
99% डॉक्टरों के पद खाली हैं, लेकिन "भगवान भरोसे" वाली सुविधा फुल ऑन!
नर्सिंग स्टाफ इतना कम है कि मरीजों को आपस में "भाई, इंजेक्शन तू लगा दे, मैं तेरे को सलाइन चढ़ा दूंगा" वाली आत्मनिर्भरता दिखानी पड़ती है।
यहाँ इलाज कम, धैर्य की परीक्षा ज्यादा होती है—डॉक्टर की जगह बाबा का भजन गाओ, शायद चमत्कार हो जाए!
स्वास्थ्य केंद्र: इमारतें हैं, इलाज गायब!
जिले के उप स्वास्थ्य केंद्रों की हालत ऐसी है कि वहाँ इलाज की उम्मीद रखना मतलब अपनी किस्मत को "सुपर ओवर" में डालना!
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दवा से ज्यादा धूल और डॉक्टर से ज्यादा खाली कुर्सियाँ मिलती हैं।
डॉक्टर का नामपट्ट इतना पुराना है कि उसे पढ़ने के लिए पुरातत्व विभाग की टीम बुलानी पड़े!
मरीज इलाज के लिए जाता है और सलाह लेकर लौटता है—"पैरासिटामॉल खा लो, बाकी ऊपरवाला देख लेगा!"
बुनियाद केंद्र: "काढ़ा पी लो, एलोपैथी तो वैसे भी ओवररेटेड है!"
बुनियाद केंद्रों में डॉक्टरों का अकाल ऐसा है कि वहाँ मरीज को देखते ही स्टाफ सांत्वना देने में जुट जाता है—"टेंशन मत लो, सब ठीक हो जाएगा!"
दवा माँगो तो जवाब मिलता है— "काढ़ा बना लो, ये एलोपैथी तो शरीर को खराब करती है!"
लगता है यहाँ इलाज से ज्यादा "हर्बल लाइफ" का प्रचार चलता हो।
मरीज बीमार आता है, और "आयुर्वेदिक ज्ञान" लेकर लौटता है—फ्री में!
वेंटिलेटर पर स्वास्थ्य, माइक पर नेताजी!
शिवहर की स्वास्थ्य व्यवस्था खुद वेंटिलेटर पर पड़ी कराह रही है, लेकिन नेताजी के माइक से "विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं" की गूँज थमने का नाम नहीं लेती।
हर चुनाव में नई योजनाओं के ढोल पीटे जाते हैं, लेकिन सदर अस्पताल की हालत देखो तो लगता है कि ये वादे भी यहाँ भर्ती होकर दम तोड़ देते हैं!
बाहर बोर्ड पर "सुपर स्पेशलिटी" लिखा है, अंदर रेफर स्लिप का ढेर—नेताजी का हेलीकॉप्टर तैयार है, जनता की उम्मीदें ICU में!
निष्कर्ष: इलाज नहीं, बस मुजफ्फरपुर का टिकट!
शिवहर के अस्पतालों का असली मंत्र है— "धैर्य रखो, या मुजफ्फरपुर भागो!"
यहाँ इलाज की उम्मीद करना वैसा ही है जैसे बिना टिकट के ट्रेन में चढ़ने की कोशिश!
नया सरकारी स्लोगन बनाओ— "हम इलाज नहीं करते, बस एंबुलेंस की लाइन लगवाते हैं!"
जनता को अब अपनी याददाश्त का इलाज करवाना चाहिए, क्योंकि हर बार वही वादे, वही नेता, और वही रेफर स्लिप!
अगर अब भी नहीं चेते, तो जल्दी ही जनता की उम्मीदें ICU में होंगी, और नेताजी हेलीकॉप्टर से फूल बरसाने आएँगे—
RIP टू शिवहर हेल्थकेयर!