इसलिए लालू प्रसाद यादव के कहने पर कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी पप्पू यादव को पूर्णिया से टिकट नहीं मिला और वे निर्दलीय चुनाव लड़ने पर मजबूर हो गए थे. पप्पू यादव को हराने के लिए तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में कैंप किया था और अपील की थी कि भले ही भाजपा को वोट दे देना पर पप्पू यादव को वोट नहीं पड़ना चाहिए. हालांकि तेजस्वी यादव की अपील के बाद भी पप्पू यादव डंके की चोट पर पूर्णिया से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे.
अब बात करते हैं कन्हैया कुमार की. कन्हैया कुमार युवा नेता हैं और देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जेएनयू से पढ़ाई लिखाई करके राजनीति में आए हैं. राजनीति की शुरुआत उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से की थी और बेगूसराय से 2019 के चुनाव मैदान में भी उतरे थे, लेकिन मात खा गए थे. 2024 में भी कन्हैया कुमार बेगूसराय से ही चुनाव मैदान में कांग्रेस के टिकट पर उतरना चाहते थे पर लालू प्रसाद यादव ने ऐसा होने नहीं दिया.
लालू प्रसाद यादव जानते हैं कि कन्हैया कुमार अगर बिहार की राजनीति में आ गए तो फिर सबसे बड़ा खतरा तेजस्वी यादव को हो सकता है. इसलिए उन्होंने वीटो पावर का इस्तेमाल कर कन्हैया कुमार को बिहार से बाहर की राजनीति करने पर मजबूर कर दिया. बाद में कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को दिल्ली की उत्तर पूर्वी सीट से चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वहां वे भाजपा के मनोज तिवारी से मात खा गए थे. इन दोनों बानगियों को परखें तो यह पता चलता है कि लालू प्रसाद यादव राजद और अपने बेटे तेजस्वी यादव की भविष्य के लिए काफी सचेत प्रतीत होते हैं.
इसके उलट कांग्रेस बिहार जैसे हिन्दी पट्टी वाले प्रदेश में अपने भविष्य को लेकर उदासीन दिखती है. लालू प्रसाद यादव ने तो राजद के भविष्य को बचाने के लिए पप्पू यादव और कन्हैया कुमार का काम लगवा दिया लेकिन कांग्रेस ने अपने भविष्य के लिए क्या किया. लालू प्रसाद यादव को खुश करने के लिए वह अपने ही नेताओं को इधर उधर शिफ्ट होने पर मजबूर होती रही. क्या कांग्रेस नहीं चाहती कि बिहार जैसे राज्य में कांग्रेस मजबूत हो? अगर वह ऐसा करना चाहती है तो वह अपने ही नेताओं को दरबदर की ठोकरें खाने को क्यों मजबूर कर रही है?
अगर राहुल गांधी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मजबूत होते देखना चाहते हैं तो उन्हें पप्पू यादव को फौरन कांग्रेस में शामिल करना चाहिए और कन्हैया कुमार को अभी से ही बिहार की राजनीति में फील्डिंग के लिए उतार देना चाहिए. अगर अभी से कांग्रेस ऐसा करती दिखाई देती है तो चुनाव में उसे जबर्दस्त फायदा हो सकता है अन्यथा राजद की पिछलग्गू बनकर वह राजनीति तो कर ही रही है. अब यह राहुल गांधी को तय करना है कि कांग्रेस को बिहार में पुनर्जीवित करने के लिए गंभीर हैं या नहीं.