SHEOHAR : भ्रष्टाचार की फैक्ट्री या लोकतंत्र का कबाड़ख़ाना?*
*"भ्रष्टाचार की फैक्ट्री है शिवहर। जिस-जिस पे जनता ने उम्मीद जताई, वही करप्शन का ठेकेदार बन बैठा।"*
_रिपोर्ट— सुधीर गुप्ता, जनसुराज नेता व संभावित विधानसभा प्रत्याशी_
कितनी विडंबना है! एक ज़िला जो संविधान की किताब में 'प्रशासनिक इकाई' कहलाता है, असल में वह घूसखोरी का खुला गोदाम बन चुका है—बिना छत के, बिना दीवार के—बस टेबल के नीचे हाथ चलता है और ऊपर से आदेश!
शिवहर का जिला निबंधन कार्यालय फिलहाल चर्चा में है, पर ऐसा कौन-सा सरकारी दफ्तर है जहाँ काम बिना 'नज़राना' दिए हो जाए? टेबल के नीचे जो अनौपचारिक लेन-देन होता है, वही तो यहां का असली प्रोटोकॉल है।
यहाँ भ्रष्टाचार कोई अपराध नहीं—यह तो परंपरा है।
बाबू अगर बिना लेन-देन फाइल बढ़ा दे, तो विभाग में अफवाह उड़ जाती है—"लगता है ईमानदार बन गया है... जल्दी ट्रांसफर होगा!"
हर विभाग—राजस्व, शिक्षा, स्वास्थ्य, निबंधन —सबका हाल एक-सा है। पदाधिकारी घूस के हिसाब से व्यवहार करते हैं और नेता जनहित के नाम पर ‘परिवारहित’ का ठेका उठाए फिरते हैं। जनता जिसे वोट देती है, वो विधायक नहीं बनता—वो बनता है ‘एजेंसी’—जहाँ से सड़क, शौचालय, हैंडपंप, स्कूल सबका टेंडर निकलता है, मगर विकास नहीं।
जनता, वही भोली जनता, जो हर बार यही सोचकर वोट देती है कि "शायद अबकी बार कुछ बदलेगा।" मगर बदलता कुछ नहीं—बस घोटाले का पैमाना बढ़ जाता है, 'कट मनी' की दरें अपडेट हो जाती हैं, और घोटालेबाज़ का सूट महंगा हो जाता है।
शिवहर की राजनीति अब 'सेवा' नहीं, 'सेवक बनने की प्रतियोगिता' है, जहाँ टॉप करने वाला वही होता है जो सबसे ज़्यादा कमीशन और सबसे कम आत्मा बेचने में माहिर हो।
सुधीर गुप्ता का बयान चुभता ज़रूर है, पर आईना भी दिखाता है। उन्होंने सटीक कहा—"जिस-जिस पे जनता ने भरोसा किया, वही ठेकेदारी में शामिल हो गया।"
अब जनता को यह तय करना है कि वह हर बार मूर्ख बनती रहेगी या एक दिन इस भ्रष्ट फैक्ट्री की मशीनें ही उखाड़ फेंकेगी।
क्योंकि वक्त आ गया है ये पूछने का—"ये लोकतंत्र है या 'लोक-तमाशा'? और क्या शिवहर अब सिर्फ धंधेबाज़ों का अड्डा बनकर रहेगा?"