सदियों से किन्नर, कोथी, हिजड़ा, ट्रांसजेंडर...कहते-कहलाते इन्हें पूरी दुनिया ने पुल्लिंग-स्त्रीलिंग से अलग तीसरे लिंग, यानी Third Gender के रूप में स्वीकार किया। अबतक बिहार में भी यही स्वीकार्यता थी। लेकिन, 15 अप्रैल से शुरू हो रही जातीय जनगणना के प्रगणक अपने रिकॉर्ड में थर्ड जेंडर को जाति के रूप में दर्ज करेंगे। मतलब, थर्ड जेंडर के शख्स का जन्म भले किसी भी जाति में हुआ हो- उसके लिए इस जातीय जनगणना में जाति ही 'किन्नर / कोथी / हिजड़ा / ट्रांसजेंडर (थर्ड जेंडर)’ होगी। अंग्रेजों के जमाने के बाद बिहार में पहली बार हो रही इस जातीय जनगणना में इन्हें लिंग से नहीं, बल्कि इस जाति से पहचान दी गई
सरकार कठपुतली मान रही है किन्नरों को
कोड निर्धारण के साथ जैसे-जैसे जातीय जनगणना की जानकारी फैल रही है, किन्नरों का बड़ा वर्ग इसके खिलाफ खड़ा होने की तैयारी कर रहा है। किन्नरों के समूह ने बिहार में जातीय जनगणना की सुगबुगाहट के समय ही कहा था कि सरकार एक सामाजिक अपराध करने जा रही है। बिहार में किन्नरों की सर्वमान्य प्रतिनिधि और मुखर लेखक-वक्ता रेशमा प्रसाद का सवाल तीखा, मगर मौजूं है। वह पूछती हैं कि जाति का निर्धारण जब जन्मदात्री मां या पालक पिता से होता है तो कोई सरकार उसके लिए अलग जाति की व्यवस्था कैसे कर सकती है? वह कहती हैं कि सरकार कभी हमें पिछड़ा वर्ग में रखने का झांसा देती है तो कभी हमारे लिए एक जाति का ही निर्माण कर देती है, जैसे हम कोई कठपुतली हों। जाति और जातिगत कोड का निर्धारत तो सरासर सामाजिक और कानूनी अपराध है।
लाभ देने हो तो ऐसी जनगणना का अर्थ नहीं
ट्रांसजेंडर समुदाय के कई शख्स ने इस सवाल पर 'अमर उजाला’ के सामने अपनी बात रखी। अपनी पहचान छिपाते हुए किन्नरों ने कहा कि सरकार जातिगत जनगणना करा वंचितों को उनका हक दिलाने की बात कर रही है, लेकिन सदियों से हम हर अधिकार से वंचित हैं। हर लाभ से वंचित रहे हैं। हमारे लिए तो कुछ गणना की जरूरत नहीं थी। जरूरतमंदों की गिनती नहीं, यह अपनी जरूरत के लिए की जा रही गिनती है। किन्नरों ने कहा कि कर्नाटक की तरह बिहार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को या तो अलग से 1% आरक्षण निर्धारित किया जाना चाहिए या सभी वर्गों में 1% आरक्षण किन्नरों के लिए होना चाहिए।