Bihar Politics: वक्फ संशोधन अधिनियम अब कानून बन गया है। लोकसभा राज्यसभा दोनों सदनों से पारित होने के बाद इस अधिनियम को अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस कानून को मंजूरी दे दी है। वक्फ संशोधन बिल अब कानून बन गया है। लोकसभा में जब वक्फ संशोधन बिल पास हुआ तो जदयू लोजपा(रा) सहित एनडीए में शामिल तमाम दलों ने बिल का समर्थन किया। जिसके बाद से ही ये सभी पार्टी विपक्ष के निशाने पर आ गए। बिहार में विपक्ष(राजद) जदयू और लोजपा(रा) पर लगातार हमलावर है। जदयू के कई मुस्लिम नेताओं ने लोकसभा में जदयू के वक्फ संशोधन विधेयक के समर्थन के बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया। सभी इस्तीफा दिए मुस्लिम नेताओं ने पार्टी औऱ सीएम नीतीश पर मुसलमानों के साथ विश्वासघात का आरोप लगाया। मुस्लिम नेताओं के एक के बाद एक इस्तीफे से पार्टी में हड़कंप मच गया। जिसके बाद जदयू के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी में शामिल मुस्लिम नेताओं के साथ मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। लेकिन यहां भी जदयू नेताओं के सिर्फ अपनी बातें रखी और पत्रकारों के सवालों का जवाब दिए बगैर ही प्रेस कॉफ्रेंस से चले गए। जिसको लेकर भी विपक्ष ने जदयू पर हमला बोला।
वक्फ बिल के समर्थन से जदयू को होगा नुकसान ?
बता दें कि, बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में माना जा रहा है कि जदयू का वक्फ बिल का समर्थन करना उनके लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। विपक्ष भी अपने बयान से सरकार को घेर रहा है। ऐसे में राजनीतिक जानकारों की मानें तो बिहार में जदयू को मुस्लिम वोट बैंक खोने का डर अब सताने लगा है। जदयू के मुस्लिम वोटों की बात करें तो साल 2014 में जब सीएम नीतीश ने एनडीए का साथ छोड़ा था तब उन्हें मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिला था चूकि राज्य में राजद का मुस्लिम कोर वोट बैंक है तो इसका फायदा सीएम नीतीश को भी मिला और उन्हें अधिक मुस्लिम मत पड़े। इन आंकड़ों की मानें तो जब जब सीएम नीतीश एनडीए के साथ रहे हैं तब तब उनके हाथों से मुस्लिम वोट छूटे हैं और इस बार तो उनके वक्फ संशोधन बिल को समर्थन देने से मुसलमानों का एक बड़ा तबका उनसे नाराज है। आंकड़ों को वर्तमान स्थिति को देखने तो इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू को बड़ा घाटा हो सकता है।
जब जब एनडीए के साथ गए तब तब हुआ नुकसान
गौरतलब हो कि, सीएम नीतीश एक समय मुस्लिम वोटरों के बीच अधिक लोकप्रिय थे। लेकिन जब वो एनडीए के साथ गए तो उनका मुस्लिम समर्थन तेजी से घटा। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 2014 और 2015 के चुनावों में जब नीतीश कुमार मोदी विरोधी खेमे में थे, तब उन्हें मुस्लिम मतदाताओं से भरपूर समर्थन मिला। एक रिपोर्ट की मानें तो, 2014 के लोकसभा चुनावों में जब जदयू वामपंथी दलों के साथ गठबंधन में उतरी तो उसे 23.5% मुस्लिम वोट मिले। इसके बाद 2015 के विधानसभा चुनावों में जब जेडीयू महागठबंधन (आरजेडी और कांग्रेस के साथ) का हिस्सा थी तो गठबंधन को करीब 80% मुस्लिम वोट हासिल हुए।
NDA में आने के बाद बदला समीकरण
2015 के बाद नीतीश कुमार ने पाला बदला और दोबारा बीजेपी के साथ मिलकर एनडीए में वापसी की। जिससे मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा टूट गया। इसका असर 2019 और 2020 के चुनावों में साफ नजर आया। 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू गठबंधन को महज 6% मुस्लिम वोट मिले, जबकि 80% मुस्लिम वोट आरजेडी के खाते में गए। 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में यह गिरावट और गहरी हो गई, जब एनडीए को सिर्फ 5% मुस्लिम वोट हासिल हुए। 2024 के हालिया लोकसभा चुनावों में भी जदयू को सिर्फ 12% मुस्लिम वोट मिले, जो 2014 की तुलना में लगभग 50% की गिरावट है।
आंकड़ों में मुस्लिम आबादी और वोटों का असर
2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में मुस्लिम आबादी 1.75 करोड़ थी, जो कुल जनसंख्या का करीब 17% है। 2024 में कुल मतदाता संख्या 7.64 करोड़ तक पहुंच गई है, जिसमें मुस्लिम मतदाताओं की अनुमानित संख्या 1.29 करोड़ है। बिहार के चार मुस्लिम बहुल जिलों (जहां 30% से अधिक मुस्लिम जनसंख्या है) के आंकड़े भी दिलचस्प हैं- 2015 में जब जेडीयू महागठबंधन में थी, उसने यहां 7 सीटें जीतीं। लेकिन 2020 में एनडीए में रहते हुए जेडीयू को सिर्फ 3 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।
मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने की रणनीति भी असफल
जदयू ने मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए 2015 में 7 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया। जिनमें से 5 जीत गए। लेकिन 2020 में पार्टी ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे और कोई भी जीत नहीं सका। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि जेडीयू की एनडीए में वापसी ने उसके पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक को बुरी तरह झटका दिया है। यह सियासी समीकरण आने वाले चुनावों में भी जदयू की रणनीति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। वहीं वक्फ संशोधन बिल को लेकर जो सियासत गरमाई हुई है उसका भी सीधा असर विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।