भगवान विष्णु से उसने कहा कि आप मेरे शरीर में वास करें, ताकि जो कोई मुझे देखे उसके समस्त पाप नष्ट हो जाएं. वह जीव पुण्य आत्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में जगह मिले. वरदान के बाद जो कोई भी उसे देखता उसके सारे कष्ट दूर हो जाते. विधि के विधान को समाप्त होता देखकर ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए.
उन्होंने कहा, “हे परमपुण्य गयासुर! मुझे ब्रह्म-यज्ञ करना है और तुम्हारे समान पुण्य-भूमि मुझे कहीं नहीं मिली. गयासुर के लेटते ही 5 कोस तक उसका शरीर फैल गया. उसके शरीर पर बैठकर सभी देवी-देवताओं ने यज्ञ किया.
गया जी' के नाम की जानें पौराणिक कथा
विशाल यज्ञ के बाद भी गयासुर का शरीर अस्थिर रहा. ये देख देवता चिंतित हो गये. देवाताओं ने एक और योजना बनाई. सभी ने एक मत होकर भगवान विष्णु से कहा, अगर आप भी यज्ञ में शामिल हो जायें तो फिर गयासुर का शरीर स्थिर हो सकता है. कहा जाता है कि भगवान विष्णु की क्रिया से गयासुर स्थिर हो गया. त्याग को देखकर भगवान विष्णु ने गयासुर से वरदान मांगने के लिए कहा.
गयासुर ने भगवान विष्णु से कहा कि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें. साथ ही मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें ताकि यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए. ऐसे में विष्णु ने कहा गयासुर तुम धन्य हो. तुमने लोगों के जीवित अवस्था में भी कल्याण का वरदान मांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो. तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने यहां आएंगे और सभी आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी. तब से ही यहां पर पितरों का श्राद्ध तर्पण किया जाता है.