अधिकारी ने बताया कि धारा 370 खत्म होने और लोकतंत्र के नए माहौल में किसी आतंकी संगठन का यह दुस्साहस सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ अब खुद आतंकियों के लिए भी नई चुनौती बन सकता है। लश्कर से जुड़े द रेसिस्टेंस फोर्स (टीआरएफ) नामक संगठन ने स्थानीय समर्थन खोने के जोखिम पर इस हमले को अंजाम दिया है। वैसे इस संगठन के असल इरादे जांच के बाद ही सामने आएंगे।
इससे पहले एक और दो अगस्त, 2000 को आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाया था और तब अलग-अलग पांच वारदातों में कुल 89 लोग मारे गए थे। 2001 में किश्तवाड़ में ऐसे ही हमले में 43 यात्री मारे गए। हालांकि इसके बाद से कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ किसी सैलानी या श्रद्धालु पर आतंकी हमला नहीं हुआ।
2020 से फिर शुरू हुई सैलानियों पर हमले की घटना
सैलानियों पर हमले की धटना 2020 के बाद से फिर तब देखी गई, जब पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-ताइबा समर्थित टीआरएफ वजूद में आया। इसने 9 जून, 2024 को रियासी में सैलानियों पर हमला किया जिसमें 9 की मौत हुई और 41 घायल हुए। उसी साल अक्तूबर में इसने एक डॉक्टर समेत छह मजदूरों को मारा। टीआरएफ अब तक 22 आम लगों की हत्या कर चुका है।
गृहमंत्रालय की ओर से संसद में एक सवाल के जवाब में कहा गया है कि 2019 में गठित टीआरएस आम लोगों को निशाना बनाता है। इसपर 2023 में यूएपीए के तहत प्रतिबंध लगा दिया गया है।