विपक्ष के कदम ने केंद्र पर बनाया दबाव; बिहार-कर्नाटक व तेंलगाना के जाति सर्वेक्षण से बदली स्थिति

Updated on 02-05-2025
Todaysheoharnewsआगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल करने का केंद्र सरकार का कदम राष्ट्रीय नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव भले हो सकता है, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ केंद्र के इस निर्णय के पीछे बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना की ओर से कराए गए जाति सर्वेक्षण का नतीजा देखते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन तीनों राज्यों की पहल और इसके बाद विपक्ष की ओर से लगातार इसे चुनावी मुद्दा बनाने के चलते ही केंद्र सरकार को मजबूरी में जाति गणना की घोषणा करनी पड़ी। हालांकि, जाति गणना के परिणामों को लेकर विशेषज्ञ बंटे हुए हैं। एक खेमा जहां यह मानता है कि इससे राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को आकार देने के साथ ही कल्याणकारी योजनाओं और चुनावी रणनीतियों को अमलीजामा पहनाने में बहुत मदद मिलेगी वहीं दूसरा खेमा मानता है कि इससे सामाजिक विद्वेष बढ़ने का खतरा है।

जाति गणना कराने वाले तीन राज्यों में से कर्नाटक और तेलंगाना कांग्रेस शासित हैं, जबकि तीसरे राज्य बिहार में जब सर्वेक्षण हुआ था उस वक्त कांग्रेस तत्कालीन नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन सरकार का हिस्सा थी।
बिहार : आंकड़े जिन्होंने कहानी बदल दी, 63% से अधिक आबादी ओबीसी और ईबीसी की
बिहार आधिकारिक तौर पर जाति गणना कराने में सबसे आगे रहा। फरवरी, 2020 में विधानसभा ने राष्ट्रीय जाति जनगणना के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया। तब महागठबंधन गठबंधन का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी। यहां तक कि उस समय बिहार की राजनीतिक पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा रही भाजपा को भी इसका समर्थन करना पड़ा। भाजपा समेत सभी दलों के सदस्यों वाले एक प्रतिनिधिमंडल ने 2021 में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर देश भर में जाति गणना की मांग की। केंद्र की ओर से इस मामले में तब कदम न उठाए जाने के बाद बिहार सरकार ने अपना खुद का सर्वेक्षण करवाया। 2 अक्तूबर, 2023 को सार्वजनिक किए गए परिणामों से पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) मिलकर 63% से अधिक आबादी बनाते हैं। राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ बताई गई थी। इसमें से ओबीसी की संख्या 3.54 करोड़ (27%) और ईबीसी की संख्या 4.7 करोड़ (36%) थी। अगड़ी जातियों की संख्या 15.5%, अनुसूचित जातियों की संख्या 20% और अनुसूचित जनजातियों की संख्या 1.6% दर्ज की गई थी। जातिगत आंकड़ों से परे, सर्वेक्षण ने गंभीर आर्थिक वास्तविकताओं को उजागर किया। बिहार में एक तिहाई से अधिक परिवार 200 रुपये प्रतिदिन पर जीवन यापन कर रहे थे। अनुसूचित जाति के परिवारों में यह अनुपात बढ़कर लगभग 44% हो गया। बिहार में लगभग 2.97 करोड़ परिवारों में से 94 लाख (34.13%) की मासिक आय 6,000 रुपये या उससे कम है। शैक्षिक आंकड़ों से पता चलता कि बिहार की सिर्फ 7% आबादी के पास स्नातक की डिग्री है, जो राज्य के बेरोजगारी संकट की गहराई को दर्शाता है।

तेलंगाना : जाति जागरूकता पर आधारित राजनीतिक बदलाव
तेलंगाना के सर्वेक्षण का दायरा बहुत व्यापक था। इसमें जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और राजनीतिक भागीदारी शामिल थी। मात्र 50 दिनों में 96.9% घरों को कवर करने वाला यह सर्वेक्षण 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस का एक प्रमुख चुनावी वादा था। बीआरएस पर पार्टी की शानदार जीत का श्रेय आंशिक रूप से गौड़, मुन्नुरू कापू और यादव जैसे पिछड़े समुदायों को दिया गया। सर्वेक्षण रिपोर्ट में पिछड़े वर्गों (बीसी) की आबादी 56.33%, एससी की 17.43% और एसटी की 10.45% बताई गई, जबकि अन्य जातियों (ओसी) की आबादी 15.79% होने का अनुमान है। वास्तविक संख्या में पिछड़े वर्ग की संख्या लगभग 2 करोड़ थी, जिसमें 35 लाख से अधिक पिछड़े मुस्लिम शामिल थे। अनुसूचित जातियों की संख्या लगभग 61.8 लाख और अनुसूचित जनजातियों की संख्या लगभग 37 लाख थी। पिछड़े समुदायों की संख्या लगभग 44 लाख थी। कुल मुस्लिम आबादी 44.57 लाख या कुल आबादी का 12.56% थी। इनमें से 10.08% बीसी मुस्लिम और 2.48% ओसी मुस्लिम थे। पिछले विधानसभा चुनाव में बीआरएस ने 22 सीटें पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को आवंटित की थीं, जबकि कांग्रेस और भाजपा ने क्रमशः 34 और 45 पिछड़ी जातियों के उम्मीदवार मैदान में उतारे थे।
 

कर्नाटक : जाति सर्वेक्षण राजनीतिक रूप से बहुत जटिल रहा
कर्नाटक का जाति सर्वेक्षण अधिक लंबित और राजनीतिक रूप से जटिल रहा। 2015 में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के पहले कार्यकाल के दौरान शुरू किए गए सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण के निष्कर्ष कई साल बाद इस साल फरवरी में प्रस्तुत किए गए। देरी के पीछे कांग्रेस के भीतर की आंतरिक कलह को कारण बताया गया। लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रमुख समुदायों ने निष्कर्षों को अवैज्ञानिक और पुराना बताकर खारिज कर दिया। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, जो खुद वोक्कालिगा हैं, उन्होंने रिपोर्ट जारी करने का विरोध किया। सिद्धरमैया मंत्रिमंडल ने 11 अप्रैल को निष्कर्षों की समीक्षा की। सर्वेक्षण में चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया- राज्य की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 69.6% है, जो पहले के अनुमानों से कहीं ज्यादा है। रिपोर्ट में ओबीसी कोटा 32% से बढ़ाकर 51% करने की सिफारिश की गई।


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