Today sheohar news: जरूरी नहीं कि खून के ही रिश्ते ही अच्छे होते हैं। कभी -कभी खून के रिश्ते अपने परिवार के साथ मुसीबत में खड़े नहीं होते हैं। किसी भी रिश्ते की बुनियाद मन की भावनाओं पर टिकी होती है। फिल्म 'दत्तक पुत्र' की कहानी एक ऐसे पिता पुत्र की भावनात्मक रिश्ते पर आधरित है। पुत्र पिता की अहमियत को समझ जाता है,आसमान उसके कदमों में उतर आता है। श्रीराम की नगरी अयोध्या की पृष्ठभूमि पर बनी भोजपुरी फिल्म 'दत्तक पुत्र' का ट्रेलर आज लांच हुआ।
फिल्म के ट्रेलर की शुरुआत शंखनाद से होती है। बैक ग्राउंड में एक स्लोगन चलता है कि 'जो पिता की अहमियत को समझ जाता है, आसमान उसके कदमों में उतर आता है। बाप कहता है, 'पूरा अयोध्या सुन ले राजा हमार मुखाग्नि देइ, राजा हमार पुत्र हव, पुत्र से भी बढ़कर बढ़कर हमार दत्तक पुत्र हव। हीरो की एंट्री होती हैं और अपने बाबू जी के बैठने के स्थान को नमन करते हुए कहता है. 'इ स्थान हमरे बाबूजी क हव, बाबू जी क सेवा करब।' ट्रेलर में एक गाना शुरू होता है और फिल्म की नायिका गाती हैं, 'सिया संग आओ राम।' ट्रेलर के अगले सीन में दिखाया गया है कि नायक नायिका से कहता है, 'लइका और लइकी में दोस्ती ना होला मैडम, लइका और लइकी में सिर्फ प्यार होला।'
ट्रेलर में आगे दिखाया गया है कि फिल्म का नायक दरोगा से कहता, 'हम काहे कोर्ट जाई, जब कुछ कईलही नइखे। दरोगा कहता हैं, 'एफआईआर भइल बा।' नायक पर हत्या की कोशिश, जबरन वसूली, जबरन कब्जा के आरोप में फंसा दिया जाता है। तभी विलेन की एंट्री होती है और वह कहता है, 'हम त खाली ड्रामा कइले रहली, इ नाटक क असली डायरेक्टर त इ प्रधान जी हव।' नायक को रेप और हत्या के आरोप में भी फंसा दिया जाता है। नायक कहता है, 'ना हम रेप कइले बाटी ना ही हत्या।' नायक के बाबू जी नायक से कहते हैं, 'खून के रिश्ता से भी बढ़कर होला मन क रिश्ता, राजा के साथे हमार मर्यादा अउर मन क रिश्ता बा।' बाबू जी की मृत्यु के बाद नायक को उनका अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाता है। नायक कहता है, 'आज हम अपने बाबू जी के चिता क राख के कसम खा के आईल बाटी, अपने बाबू जी के अपराधियन के पुलिस चौकी के अंदर ही जलाके राख कर देब।' तभी उसे उनके बाबू जी की बात याद आती है, 'इ मर्यादा पुरुषोत्तम राम क नगरी है हव, यहां सत्य क जीत होता सत्य के।'
फिल्म दत्तक पुत्र का निर्देशक प्रमोद शास्त्री ने किया है। वह कहते हैं, हमारी फिल्म की कहानी अयोध्या की गालियों की है। जब से अयोध्या में विकास तेजी से बढ़ा है वहां की जमीनें बहुत महंगी हो गई है। और, जमीन की लालच में आकर लोग रिश्ते को भूल जा रहे हैं। बाबू जी की जमीन लोग जरदस्ती कब्जा करने की कोशिश करते हैं। जो पुत्र बिना पिता का पैर दबाए नहीं सोता है उसे पिता की हत्या के इलज्जाम में फसा दिया जाता है। किस तरह से नायक सिद्ध करता है कि जरूरी नहीं खून के ही रिश्ते ही बहुत अच्छे होते हैं। अपने पिता का विश्वास कभी उसके ऊपर से टूटने नहीं देता है।
इस फिल्म में दत्तक पुत्र की भूमिका निभा रहे अभिनेता यश कुमार मिश्रा कहते हैं, 'यह फिल्म पिता पुत्र के भावनात्मक रिश्ते पर आधरित है। इस फिल्म में दिखया गया है कि खून से भी बढ़कर रिश्ता मन का होता है। बेटा भले ही दत्तक पुत्र है, लेकिन वह अपने पिता के आदर्शो पर ही चलता है। जब कि उसे काफी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है, लेकिन अपने बाबू जी के सिखाए आदर्श के रास्ते पर ही चलता है।' इस फिल्म में यश मिश्रा के अलावा शुभी शर्मा, विनोद मिश्रा, देव सिंह, शैलेंद्र श्रीवास्तव, समर्थ चतुर्वेदी, मनीष चतुर्वेदी और राधे खान की मुख्य भूमिकाएं हैं।